संतान योग
कुंडली में संतान योग एक ऐसा योग है जो ग्रहों द्वारा निर्मित होता है और प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके जीवन में उसको एक अच्छी और संस्कारी संतान की प्राप्ति हो। कुछ लोगों की तो यह इच्छा समय रहते पूरी हो जाती है और कुछ को पूरे जीवन इंतजार करना पड़ता है तथा कुछ लोगों को विलंब से संतान की प्राप्ति होती है। यह सब कुछ कुंडली में बनने वाले संतान योग पर निर्भर करता है कि आपकी संतान कब, कैसे और किस समय पर हो सकती है।
प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह अमीर हो अथवा गरीब, उसका सपना होता है कि उसका अपना वंश आगे बढ़े और उसको अच्छी संतान मिले। एक ऐसी संतान की प्राप्ति हो जो उनके कुल का नाम रोशन कर सके और कुलदीपक बन सके तथा जीवन में सही कर्म करते हुए अपना और अपने परिवार माता-पिता और कुल का नाम रोशन कर सके। यही वजह है कि लोग संतान प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के जतन करते हैं। कुंडली में ग्रह जनित कुछ विशेष स्थितियां होती हैं, जिनके आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को संतान प्राप्ति को लेकर किस प्रकार के योग कुंडली में निर्मित हो रहे हैं।
जन्म कुंडली की विवेचना से तो यह भी पता चलता है कि आपको किस प्रकार की संतान की प्राप्ति होगी क्योंकि आपके पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर जो संतान आपको मिलने वाली है, वह आपको सुख देगी अथवा दुख देगी, यह सब कुछ जन्मपत्रिका के आधार पर पता चलता है, इसलिए कुंडली में संतान योग देखने के लिए माता और पिता दोनों की कुंडली का अध्ययन किया जाता है और दोनों की ही कुंडली में पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थिति विशेष रूप से विचारणीय होती है। यदि लग्न का स्वामी पंचम भाव में हो अथवा पंचम भाव का स्वामी लग्न भाव में हो या फिर पंचम भाव का स्वामी केंद्र त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उत्तम संतान की प्राप्ति का योग बनाता है।
यदि कुंडली के पंचम भाव का स्वामी अर्थात पंचमेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो अथवा नीच राशिगत हो या शत्रु ग्रह की राशि में स्थित हो या फिर पंचम भाव पीड़ित अवस्था में हो और पंचम भाव का स्वामी भी पंचम भाव में पीड़ित अवस्था में हो तो संतान प्राप्ति होने की संभावना होने पर भी कष्ट पूर्वक संतान प्राप्ति होती है।
यदि नवम भाव का स्वामी लग्न भाव में विराजमान हो लेकिन पंचम भाव का स्वामी नीच राशिगत हो और पंचम भाव में केतु अथवा बुध ग्रह विराजमान हो तो मंत्र जाप और उचित चिकित्सा द्वारा संतान की प्राप्ति होती है।
यदि कुंडली के पंचम भाव में मिथुन राशि, कन्या राशि, मकर राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में शनि देव विराजमान हों और बृहस्पति की दृष्टि भी पड़ रही हो या वह इनमें विराजमान हों तो ऐसे जातक को दत्तक संतान प्राप्त होने के योग बनते हैं।

यदि कुंडली में लग्न भाव का स्वामी मंगल के साथ संबंध बना रहा हो और कुंडली के पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो तो जातक को प्रथम संतान का कष्ट मिलने के योग बनते हैं।
यदि कुंडली में गुरु बृहस्पति द्वारा अधिष्ठित राशि से पंचम भाव तथा कुंडली में लग्न से पंचम भाव, दोनों भावों में पाप ग्रह स्थित हों और संतान की क्षमता से संबंधित कोई और योग ना बन रहा हो तो ऐसे जातक को संतान शोक मिल सकता है। लग्न भाव में गुलिक के स्थित होने और लग्नेश के नीच राशि में स्थित होने पर भी ऐसा ही फल मिल सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली के पंचम भाव में राहु विराजमान हों, उनके साथ कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह हो तथा देव गुरु बृहस्पति नीच राशिगत हों तो व्यक्ति को संतान शोक मिलने की संभावना रहती है।